मैं न समझा बुलबुल बे-बाल-ओ-पर ने क्या कहा गोश-ए-गुल में क़ासिद-ए-बाद-ए-सहर ने क्या कहा नज़्अ' के दम भी ज़ि-बस लैला को माने' था हिजाब चुपके चुपके रोई और उस नौहागर ने क्या कहा तेरे वहशी से अबस तुझ को ख़फ़ा करते हैं लोग सब ये बातें झूठ थीं उस बे-ख़बर ने क्या कहा सैंकड़ों रंगीनियाँ पैदा कीं उस ने वक़्त-ए-क़स्द ख़ून-ए-मजनूँ से ज़बान-ए-नेश्तर ने क्या कहा नामा-बर को गालियाँ दीं उस ने सुन कर मेरा नाम मुँह को तकता रह गया और नामा-बर ने क्या कहा हो गया उस को पहन कर और भी मग़रूर वो कान में उस शोख़ के सिल्क-ए-गुहर ने क्या कहा जोड़ना उन का निहायत ऐ 'हवस' दुश्वार था दिल के टुकड़े देख मेरे शीशागर ने क्या कहा