हम तुम्हारे कूचे की रस्म को निभाएँगे फूल फूल आए थे ज़ख़्म ज़ख़्म जाएँगे तुम हसीन फूलों को शाख़ शाख़ से चुन लो ज़र्द ज़र्द पत्तों को हम समेट लाएँगे धूप के मुसाफ़िर हैं धूप धूप चलने दो है शजर शजर नंगा सर कहाँ छुपाएँगे फ़र्द फ़र्द रहने से क़ाफ़िले नहीं बनते फ़र्द फ़र्द मिल ही कर क़ाफ़िले बनाएँगे कुछ पता नहीं चलता रात कितनी बाक़ी है कब तलक चराग़ों में ख़ून-ए-दिल जलाएँगे हम बुलंद-हिम्मत हैं तेग़ से नहीं डरते क़ातिलों की महफ़िल में सर उठा के जाएँगे तह-ब-तह ज़माने की गर्द जम गई 'हामी' आइना हुआ धुँदला साफ़ कर न पाएँगे