जिस्म बाक़ी है जान ख़ाली है आदमी से मकान ख़ाली है बर्फ़ में क़ैद धूप के पंछी पर सलामत उड़ान ख़ाली है बाम-ओ-दर की फ़ज़ा है बर्फ़ीली चाँद से आसमान ख़ाली है नोक-ए-शमशीर लिख रही है किताब हर क़लम की दुकान ख़ाली है अब किसी आँख में नहीं शोख़ी तीर से हर कमान ख़ाली है बे-सुरी बाँसुरी कनहैया की दर्द की लय से तान ख़ाली है एक से एक लोग हैं 'हामी' ये न समझो जहान ख़ाली है