जब समाती है रात अँधेरे में उन की होती है बात अँधेरे में उन के आसेब से बचे रहना जो लगाते हैं घात अँधेरे में वक़्त ने पीछे मुझ को छोड़ दिया रह गई मेरी ज़ात अँधेरे में मेरी हर बात झूट पर मब्नी जिस तरह तेरी बात अँधेरे में सब के सब ही सियाह हो जाएँ रंग रख दो जो सात अँधेरे में ज़िंदगी क्या है इक अंधेरा है हो न जाए वफ़ात अँधेरे में जान क्या होगी मेरे लफ़्ज़ों में है क़लम और दवात अँधेरे में क्या उजाला भी दे चराग़ मुझे 'शोख़' जब है हयात अँधेरे में