हम ने तिरी तलब को तमन्ना बना लिया पढ़ पढ़ के तेरा नाम वज़ीफ़ा बना लिया हमवार कर ली पहले तिरे दिल की सरज़मीं और फिर यहाँ पे अपना ठिकाना बना लिया जिस के किनारे बैठ के करता था तुम से बात मैं ने तो उस नदी से भी रिश्ता बना लिया हम तो हमारे दिल को न अपना बना सके लेकिन बनाने वालों ने क्या क्या बना लिया हर साँस पे है मौत का धड़का लगा हुआ क़ातिल को ज़िंदगी ने मसीहा बना लिया हम शातिरों के शहर में बे-मोल बिक गए हम को सियासी लोगों ने मोहरा बना लिया ख़ुशबू से रोज़ ख़त लिखा 'हाफ़िज़' हवा के नाम पत्तों को मोड़ दे के लिफ़ाफ़ा बना लिया