हम ने माना कि शिकस्ता है किनारा फिर भी कोई दिखलाए हमें क़ुत्ब-सितारा फिर भी हुस्न पर नाज़ की तस्वीर कहाँ थी मुमकिन हम ने काग़ज़ पे सितारों को उतारा फिर भी ख़त भी लिखवाए पे इज़हार को काफ़ी न हुए हम ने अश्कों से हर इक लफ़्ज़ उभारा फिर भी आओ दो गाम सही साथ निभाएँ 'साग़र' कौन होता है भला किस का सहारा फिर भी