तुझ को सोचों में बसा कर शायरी करता हूँ मैं ज़ेहन-ओ-दिल की वादियों में रौशनी करता हूँ मैं मैं तिरा 'राँझा' तू मेरी हीर है जान-ए-ग़ज़ल छोड़ कर हर काम तेरी चाकरी करता हूँ मैं अपने दिल के हर वरक़ पर नाम लिख लिख कर तिरा पेश तुझ को धड़कनों की डाइरी करता हूँ मैं डूब कर ख़्वाबों में तेरे खो के तेरी याद में रोज़-ओ-शब अपनी ख़ुदी को बे-ख़ुदी करता हूँ मैं इस बुलंदी पर मुझे लाई है तेरी आशिक़ी बंद आँखों से तिरा दीदार भी करता हूँ मैं हादसों में झोंक देता हूँ मैं अपने आप को इस तरह ख़ुद से कभी ख़ुद दिल-लगी करता हूँ मैं