हम ने ये बात सब की ज़बाँ से सुनी तो है इस वक़्त उलझनों में हर इक आदमी तो है हम को सफ़ीर-ए-शहर-ए-वफ़ा मानती तो है दुनिया ये हम को जानती पहचानती तो है क़ारून का ख़ज़ाना मैं ले कर करूँगा क्या मुझ को किसी के प्यार की दौलत मिली तो है उम्मीद का चराग़ जलाता हूँ इस लिए उम्मीद के चराग़ में कुछ रौशनी तो है हर शख़्स कह रहा है बुरा मुझ को शहर में मुझ में ज़रूर कोई न कोई कमी तो है पर्दे में तुम हँसी के छुपाओ हज़ार ग़म लेकिन तुम्हारी आँखों में 'साहिर' नमी तो है