झूम के जिस दम हवा चली थी मेरे दिल को भली लगी थी परवाने तो लाखों में थे महफ़िल में इक शम्अ' जली थी शो'लों पर चलते हैं कैसे मेरी अक़्ल ये सोच रही थी सर्द समाँ था घर के अंदर छत पर आए धूप खिली थी तन्हाई कहते हैं जिस को मेरी नज़र में तेरी कमी थी 'साहिर' उस को गुमाँ बहुत था जिस की पत्ते पे ज़िंदगी थी