हम से रूदाद-ए-मोहब्बत में ख़यानत न हुई उस से बिछड़े तो किसी और से उल्फ़त न हुई दिल में बसते था मेरे वो कभी धड़कन की तरह बाद इस के तो मिरे दिल को मोहब्बत न हुई किस तरह सब को बताऊँ मैं बिछड़ने का सबब ज़र्ब ऐसी मिली मुझ को कभी हिम्मत न हुई उस को जल्दी थी किसी और से मिलने की तभी ऐसा रूठा वो मनाने की भी मोहलत न हुई वही शामिल है मिरे ख़ून-ए-जिगर में जिस को मुझ से मिलने की दोबारा कभी चाहत न हुई जब तलक था वो मिरी ज़ात में रौशन 'काशिफ़' मेरी आँखों को उजाले की ज़रूरत न हुई