हुस्न बे-पर्दा है जल्वा आम है देखना अहल-ए-नज़र का काम है कुछ नहीं होता ब-जुज़ हुक्म-ए-ख़ुदा आदमी तो मुफ़्त में बदनाम है अब ख़ुदा बख़्शे न बख़्शे क्या करूँ दिल तो मेरा बंदा-ए-असनाम है देखिए चलिए नज़ारे राह के ये सफ़र बस और दो इक गाम है हम-नशीनो अब तो मेरे वास्ते ज़िंदगी टूटा हुआ इक जाम है दर्द भी कुछ दब गया है दिल के साथ 'नूर' इस करवट बहुत आराम है