हुस्न-ए-जानाँ की तारीफ़ का मसअला By Ghazal << ख़ला से इन्ख़िला तक चल के... आँखों में इंसान बसाए जा स... >> हुस्न-ए-जानाँ की तारीफ़ का मसअला सख़्त मुश्किल है तालीफ़ का मसअला वो ग़ज़ल की मुकम्मल 'इबारत बनी और मुझ में है तसहीफ़ का मसअला उस की आँखों में ग़ोते लगाऊँ मगर है बिछड़ने की तख़वीफ़ का मसअला 'आशिक़ों को अज़ल से ही दरपेश है वस्ल की रात तहरीफ़ का मसअला Share on: