ख़ला से इन्ख़िला तक चल के आए हम अपने नाख़ुदा तक चल के आए घुटन दिल में बसेरा चाहती थी क़दम दश्त-ए-बला तक चल के आए हुसैनी प्यास को सोचा था मैं ने समुंदर नैनवा तक चल के आए उसे कहना मोहब्बत मुज़्तरिब है उसे कहना ख़ुदा तक चल के आए हम अपनी ज़ात में बहलोल 'हारिस' सख़ा की इंतिहा तक चल के आए