हुस्न जब तक ख़फ़ा नहीं होता आशिक़ी में मज़ा नहीं होता पूजना मत उसे ख़ुदा के लिए कोई भी बुत ख़ुदा नहीं होता तर्क-ए-उल्फ़त का ये न हो आग़ाज़ आज-कल वो ख़फ़ा नहीं होता हम भी ग़फ़लत में उम्र भर रहते गर अदू को सुना नहीं होता क्यों किसी को हक़ीर कहते हो रंग ख़ूँ का जुदा नहीं होता अपनी तक़दीर ख़ुद बना लीजे वक़्त अच्छा बुरा नहीं होता इस के आगे हैं मुश्किलें आसाँ मर्द-ए-मोमिन से क्या नहीं होता देता 'ज़ाकिर' सदा अनल-हक़ की गर ज़मीं पर खड़ा नहीं होता