हुस्न को बे-नक़ाब देखा है दिल का आलम ख़राब देखा है आए वो मेरे घर ब-सद तम्कीं मैं ने शायद ये ख़्वाब देखा है मस्त कर दे जो सारे आलम को वो किसी का शबाब देखा है मैं ने अक्सर गुनाहगारों पर करम-ए-बे-हिसाब देखा है छुपते हैं और छुप नहीं सकते ऐसा रंगीं हिजाब देखा है जब हुआ इम्तिहान-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ हुस्न को ला-जवाब देखा है क्यूँ हो जन्नत की आरज़ू हम ने कूचा-ए-बू-तुराब देखा है