हुस्न मरहून-ए-जोश-ए-बादा-ए-नाज़ इश्क़ मिन्नत-कश-ए-फ़ुसून-ए-नियाज़ दिल का हर तार लर्ज़िश-ए-पैहम जाँ का हर रिश्ता वक़्फ़-ए-सोज़-ओ-गुदाज़ सोज़िश-ए-दर्द-ए-दिल किसे मालूम कौन जाने किसी के इश्क़ का राज़ मेरी ख़ामोशियों में लर्ज़ां है मेरे नालों की गुम-शुदा आवाज़ हो चुका इश्क़ अब हवस ही सही क्या करें फ़र्ज़ है अदा-ए-नमाज़ तू है और इक तग़ाफ़ुल-ए-पैहम मैं हूँ और इंतिज़ार-ए-बे-अंदाज़ ख़ौफ़-ए-नाकामी-ए-उमीद है 'फ़ैज़' वर्ना दिल तोड़ दे तिलिस्म-ए-मजाज़