हुस्न में हुस्न-ए-नफ़ासत भी तो हो नाज़ के साथ नज़ाकत भी तो हो दौलत-ए-हुस्न बड़ी चीज़ है पर साथ किरदार की ज़ीनत भी तो हो रंग काग़ज़ पे भी खिल उठते हैं फूल में फूल की निकहत भी तो हो 'इशरत-ए-जिस्म के सामाँ हैं बहुत कुछ रवा रूह की हाजत भी तो हो ने'मतों से भरे कब दिल यारब अब 'अता सब्र-ओ-क़ना'अत भी तो हो शुक्र-ए-ने'मत करें कब या-अल्लाह ने'मतों से तिरी फ़ुर्सत भी तो हो