हुस्न पर जब शबाब आता है इक नया इंक़लाब आता है उन को भेजा है आज नामा-ए-शौक़ देखिए क्या जवाब आता है मेरी आँखों में देख कर आँसू उन को मुझ पर इताब आता है बे-नक़ाब उन को देखने के लिए रात को माहताब आता है तालिब-ए-दीद दर्स-ए-उल्फ़त लें इम्तिहाँ में ये बाब आता है आप जो भी सवाल पूछेंगे मुझ को उस का जवाब आता है क़ब्र पर मेरी गुल चढ़ाने को वो बराए-सवाब आता है तौबा करते रहो गुनाहों से शैतनत से अज़ाब आता है रात में दिन 'अज़ीज़' निकलेगा ऐसा इक आफ़्ताब आता है