तू अगर आता नहीं अपने ख़यालों को भी रोक बस चुके हैं जो तसव्वुर में जमालों को भी रोक याद आते बीते लम्हों ख़ुश-ख़िसालों की भी रोक रात की तन्हाइयों में आहों नालों को भी रोक रक़्स फ़रमाने लगा है बिफरे साँपों का हुजूम सुर्ख़ चेहरे पे मचलते काले बालों को भी रोक पहले भी चश्माब की झीलों में इक सैलाब है आसमाँ पर मद-भरे बर्फ़ाब गालों को भी रोक इश्तियाक़-ए-दीद में फ़ानी है सहराओं की रेत रह-नवर्दी में उभरते ग़म के छालों को भी रोक फिर बनाएँगे तुझे अग़्यार का दरयूज़ा-गर इन रिया-ख़ू ख़ुश-नज़र मसहूर चालों को भी रोक ज़िंदगी के रास्तों पर करते फिरते हैं शिकार नर्गिसी आँखों के मतवाले ग़ज़ालों को भी रोक सर-कशी में जुर्म-ओ-इस्तिब्दाद में मशग़ूल हैं दनदनाते मनचलों को इन रज़ालों को भी रोक जो उड़ाते हैं तमस्ख़ुर दीन के आईन पर आबरू-ए-दीन की ख़ातिर जियालों को भी रोक इक नज़र का उम्र भर न दे सके हरगिज़ जवाब इम्तिहान-ए-इश्क़ में उलझे सवालों को भी रोक 'ऐन' करता है परस्तिश ज़ात में मस्तूर तू पत्थरों की बुत-परस्ती करने वालों को भी रोक