इधर भी कभी चारागर देख लेना हरा क्यों है ज़ख़्म-ए-जिगर देख लेना उजाले यहीं आ के दम तोड़ते हैं कभी शाम को मेरा घर देख लेना गिराँ तुझ पे गुज़रे न मेरी रिफ़ाक़त कड़े कोस हैं हम-सफ़र देख लेना नहीं आरज़ी दिल की ग़म-पर्वरी कुछ यूँही अपनी होगी बसर देख लेना ये हंगामा-ए-क़स्र-ए-परवेज़ ऐ दिल रहेगा फ़क़त रात भर देख लेना बपा हश्र कर देगा राहत-कदों में मिरे रंज-ओ-ग़म का असर देख लेना सितमगार का जश्न-ए-रामिश-गरी है फ़क़त एक रक़्स-ए-शरर देख लेना शबिस्तान-ए-इशरत में जो पर्दा-गर हैं वही होंगे फिर पर्दा-दर देख लेना फ़साना मिरा ग़ौर से सुन रहा था है नम चश्म-ए-नज्म-ए-सहर देख लेना