इधर तो हम जान खो रहे हैं उधर वो उल्फ़त से रो रहे हैं कुदूरतें उम्र भर की दिल से वो आज अश्कों में धो रहे हैं न बाज़ रख हम को रोने से तू गिरें जो अश्कों के दाने बहत्तर ये किश्त-ए-हसरत में अपनी हमदम उमीद का तुख़्म बो रहे हैं इधर तरक़्क़ी ख़याल को है उधर तरक़्क़ी जमाल को है वहाँ तो मद्द-ए-नज़र है सुर्मा यहाँ तसव्वुर में रो रहे हैं जहाँ हुआ तिफ़्ल कोई पैदा कहा ये माँ ने अबुल-बशर की मिरी भी आग़ोश है कुशादा अबस ये सामान हो रहे हैं किया है बे-जुर्म क़त्ल मुझ को हुजूम-ए-अग़्यार-ओ-आश्ना में और इस पे देखो ढिटाई अश्कों से दामन अपना भिगो रहे हैं न पूछो कुछ मासियत का आलम फ़रिश्तो हम क्या कि तुम ने बचते हक़ीक़त इस की उन्हीं से पूछो सारा-ए-दुनिया में जो रहे हैं ख़बर विसाल-ए-अदू की सुन कर विसाल के मअनी सोचते हैं उन्हीं को वाँ कुछ नहीं है शादी कि ख़ुश यहाँ हम भी हो रहे हैं गिला अबस उन से कीजे 'आक़िल' किया है क़िस्मत ने उन को ग़ाफ़िल जो दर पे जा कर पुकारा मैं ने तो बोले कह दो कि सो रहे हैं