इक इक क़दम फ़रेब-ए-तमन्ना से बच के चल दुनिया की आरज़ू है तो दुनिया से बच के चल ख़ुद ढूँढ लेगा तुझ को तिरा मुनफ़रिद मक़ाम राह-ए-तलब में नक़्श-ए-कफ़-ए-पा से बच के चल बाक़ी है मेरे दिल में अभी अज़्मत-ए-वजूद क़तरे से कह रहा हूँ कि दरिया से बच के चल मिलती नहीं है राह-ए-सुकूँ ख़ौफ़-ओ-यास में गुलशन की जुस्तुजू है तो सहरा से बच के चल मुँह जादा-ए-वफ़ा से न मोड़ ऐ वफ़ा-शिआर लेकिन हुदूद-ए-चश्म-ए-तमाशा से बच के चल कितनी हसीं हैं उन के सितम की मसर्रतें शुक्र-ए-करम की ज़हमत-ए-बे-जा से बच के चल लम्हे उदास उदास फ़ज़ाएँ घुटी घुटी दुनिया अगर यही है तो दुनिया से बच के चल अपने अदब पे नाज़ है तुझ को अगर 'शकील' मग़रिब-ज़दा अदीब की दुनिया से बच के चल