इक मुजस्सम दर्द हूँ इक आह हूँ फिर भी ज़ेब-ओ-ज़ीनत-ए-अफ़्वाह हूँ मैं ने दुनिया की पसंद ओढ़ी नहीं कुछ भी हूँ फिर भी तो हक़-आगाह हूँ सद्द-ए-लहम-ओ-उस्तुख़्वाँ होते हुए हर नफ़स अब भी तिरे हमराह हूँ कर्ब वहशत ग़म मसाइल के तुफ़ैल आज तक ज़िंदा ब-हमदिल्लाह हूँ मेरे नक़्श-ए-पा से निकले रास्ते लोग फिर भी कहते हैं गुमराह हूँ परवरिश पाती है जिस से तीरगी मैं वही फ़रज़ंद-ए-मेहर-ओ-माह हूँ मय-कदे की रह से तुझ को पा लिया लोग कहते हैं कि मैं गुमराह हूँ