इल्ज़ाम बे-सबब न किसी पर धरा करें तहक़ीक़ अपने तौर पे भी कर लिया करें ख़ुद ही ग़ुबार-ए-राह दिखाएँगे रास्ता पैदा तो आप दिल में ज़रा हौसला करें रुख़सार-ओ-लब की बात बहुत हो चुकी है अब हालात-ए-हाज़िरा पे कोई तब्सिरा करें ये बात दोस्तों को भी गुज़रेगी नागवार इज़हार-ए-दुश्मनी न कभी बरमला करें टल जाती हैं मुसीबतें इस कार-ए-ख़ैर से मुहताजों बे-नवाओं को सदक़ा दिया करें नफ़रत की तीरगी को मिटाने के वास्ते हर चार सम्त प्यार का रौशन दिया करें दिल में न हो ख़ुलूस तो बे-सूद है मियाँ दिन-रात आप लाख इबादत किया करें 'शादाँ' क़दम क़दम पे ये देती रही फ़रेब हम ज़िंदगी के साथ कहाँ तक वफ़ा करें