मंसूब उन से आज मिरी ज़ात हो गई या'नी हयात-ए-नौ की शुरूआ'त हो गई नाकामी-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ के साथ साथ ख़ुद ज़िंदगी भी नज़्र-ए-ख़राबात हो गई उन की तरफ़ से जो भी मुझे ग़म 'अता हुआ मेरे लिए ख़ुशी की वो सौग़ात हो गई फिर दिल में उस की याद के बादल उमड पड़े फिर आँसुओं की आँख से बरसात हो गई महरूम हो गया हूँ पयाम-ए-विसाल से क्या जाने क्या ख़ता हुई क्या बात हो गई 'शादाँ' मिरी हयात भी पुर-नूर थी मगर क्या जाने कब ये पैकर-ए-ज़ुल्मात हो गई