तंग हम पर भी हमारी दुनिया दुश्मन-ए-इश्क़ है सारी दुनिया ज़ीस्त की मंज़िल-ए-मक़्सूद नहीं आख़िरत की है सवारी दुनिया हम भी अल्लाह के प्यारे उट्ठें जब हो अल्लाह को प्यारी दुनिया उँगलियों पर ये नचाए सब को चाहती क्या है मदारी दुनिया हम कि दुनिया के नहीं दीवाने मुख़्तलिफ़ तुम से हमारी दुनिया क्यों पनपता है दरख़्त-ए-उल्फ़त क्यों चला देती है आरी दुनिया सारी दुनिया को हराने वाली एक दरवेश से हारी दुनिया आहु-ए-वक़्त कहाँ है 'राग़िब' किस के पीछे है शिकारी दुनिया