इनायत की सितमगर ने तो की मुझ पर जफ़ा के बाद ख़बर ज़ालिम ने मेरी ली तो ली वो भी क़ज़ा के बाद पशेमाँ तुम नहीं होते मिरी हस्ती मिटा कर भी करोगे याद मुझ को तुम बहुत दिन तक फ़ना के बाद पयाम-ए-वस्ल ले कर जा रहा है नामा-बर मेरा असर हो जाए शायद कुछ उधर मेरी दुआ के बाद ख़फ़ा हो कर वो ख़ुद भी मुझ से ऐ 'बासिर' परेशाँ है कभी जो होश भी आया तो आया है ख़ता के बाद