इश्क़ में ज़ख़्म खा के देख लिया उस को अपना बना के देख लिया फिर भी मेरा नहीं हुआ ज़ालिम उस को मैं ने मना के देख लिया इक ख़ुशी भी नहीं मिली मुझ को दर्द-ओ-ग़म रंज पा के देख लिया ग़ैर से अब करूँ शिकायत क्या तुझ को भी आज़मा के देख लिया आशिक़ी का मज़ा भी ऐ 'बासिर' दिल को अपने मिटा के देख लिया