'इनायत मुझ पे फ़रमाते हैं शैख़-ओ-बरहमन दोनों मुआफ़िक़ अपने अपने अपने पाते हैं मेरा चलन दोनों तराने मेरे हम-आहंग दैर-ओ-का'बा में यकसाँ ज़बाँ पर मेरी मौज़ूँ होती है हम्द और भजन दोनों मुझे उल्फ़त है सुन्नी से भी शीआ' से भी यारी है अखाड़े में दिखा सकते हैं दिलकश बाँकपन दोनों मुझे होटल भी ख़ुश आता है और ठाकुर दुवारा भी तबर्रुक है मिरे नज़दीक प्रशाद और मटन दोनों