इंसान इसी तरह से हैं साहिब अजीब हैं इतना न ग़ौर कीजिए हम सब अजीब हैं उलझा दिया है कैसा दिल-ओ-बे-दिली के बीच ऐ रोज़गार-ए-इश्क़ ये कर्तब अजीब हैं मैं कौन हूँ तू कौन है ये लोग कौन हैं किस ने किए ये दर्जे मुरत्तब अजीब हैं कहता है दिल कि एक ज़रा चूम देखिए दिलकश तो ख़ैर होते हैं वो लब अजीब हैं हम से न सत्र-ए-हस्त पे कुछ गुफ़्तुगू करो अपनी समझ में आए जो मतलब अजीब हैं सब ठीक थे हमें ही शिकायत अबस रही 'हैदर' हम ऐसे लोग खुला अब अजीब हैं