इंतिहा-ए-यास-ओ-ग़म से जब गुज़र जाता हूँ मैं हर क़दम पर इक सुकून-ए-क़ल्ब सा पाता हूँ मैं साज़-ए-ग़म पर जब कभी कोई ग़ज़ल गाता हूँ मैं इक सरापा सोज़ की तस्वीर बन जाता हूँ मैं हर क़दम पर एक आफ़त हर क़दम पर इक बला फिर भी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता चला जाता हूँ मैं फिर किसी ताज़ा परेशानी को है मेरी तलाश फिर किसी को मुल्तफ़ित अपनी तरफ़ पाता हूँ मैं अल्लह अल्लह मस्लक-ए-मेहर-ओ-मोहब्बत ऐ 'अतीक़' आह कोई भी करे लेकिन तड़प जाता हूँ मैं