मौत सिर्फ़ इस लिए गवारा है ज़िंदगी की तरफ़ इशारा है राहत-ए-ग़म न रास आई मुझे जब से एहसास-ए-ग़म ने मारा है ज़िंदगी भी अज़ीज़ है लेकिन तेरा ग़म ज़िंदगी से प्यारा है दिल को उम्मीद ने डुबोया था तर्क-ए-उम्मीद ने उभारा है ज़िंदगी का कुछ ए'तिबार नहीं ज़िंदगी सुब्ह का सितारा है जो ठहर जाए उन के जलवों पर वो नज़र ख़ुद भी इक नज़ारा है तल्ख़ी-ए-ग़म बुरी बला है मगर तल्ख़ी-ए-ग़म मुझे गवारा है वक़्त की धड़कनों का राज़ 'अतीक़' मेरे शे'रों से आश्कारा है