इस चमन-ज़ार को सहरा न बनाओ यारो अपने हाथों से नशेमन न जलाओ यारो चोट लगते ही बिखर जाएगा आईना-ए-दिल संग-दिल मत बनो पत्थर न उठाओ यारो उस ने चाहा तो लिया काम अबाबीलों से उस के दरबार में सर अपना झुकाओ यारो दर्ज तारीख़ के औराक़ में होना है तुम्हें इस क़दर ख़ुद को न मजबूर बनाओ यारो अज़्मत-ए-ख़ाक-ए-वतन पर न कहीं हर्फ़ आए है वतन ख़तरे में अब होश में आओ यारो मुझ को है ख़ौफ़ कि आँसू न बरस जाएँ कहीं शीशा-ए-दिल को न तुम ठेस लगाओ यारो डूबे कश्ती न कहीं 'दाग़' के अरमानों की बहर-ए-जज़्बात में तूफ़ान उठाओ यारो