इस दर्जा है क्यों मुझ पे इनायत कोई पूछे क्या अब है मिरे सर की ज़रूरत कोई पूछे क्या हो गई आपस की मोहब्बत कोई पूछे कब लुट गई इस शहर की हुरमत कोई पूछे क्या सिर्फ़ ख़ुदा ही को ख़ुदा कहते हैं ये लोग क्यों ढाई है इन लोगों पे आफ़त कोई पूछे ऐवान-ए-सियासत के झरोकों से पलट कर मुझ से तो मिरे देस की हालत कोई पूछे मा'बूद के बंदों की बली चढ़ती है दिन-रात क्या ऐसे भी होती है इबादत कोई पूछे कब तक यहाँ ये मिस्र का बाज़ार लगेगा मुझ से भी तो आख़िर मिरी क़ीमत कोई पूछे सहरा में कोई देखे मिरे सब्र की वुसअ'त दरिया से मिरी प्यास की शिद्दत कोई पूछे जो सुब्ह के तारे की तरह डूब रहा हो काश उस से अँधेरों की मसाफ़त कोई पूछे जब वक़्त को मुट्ठी में जकड़ ही नहीं सकते क्यों करते हों लम्हों की हिफ़ाज़त कोई पूछे मग़रिब में हैं ख़ुद हाथ हैं मशरिक़ की कलों पर इन नफ़्स के बंदों से जसामत कोई पूछे हर सम्त से है सिर्फ़ नमक-पाशों की यलग़ार मुझ से मिरे ज़ख़्मों की मलाहत कोई पूछे हर चीज़ दिखा देते हैं ये आँखों के रौज़न कब छुपती है अंदर की कुदूरत कोई पूछे जिस पेड़ के साए में ज़मीं रहती है ठंडी उस से कभी सूरज की तमाज़त कोई पूछे हर शख़्स ही बीमार है इस शहर में 'नक़वी' किस किस से भला उस की तबीअ'त कोई पूछे