जागती आँखों के सहराओं में ख़्वाबों के सराब दूर तक बिखरे हुए पुर-ख़ार राहों में गुलाब दिन गुज़र जाएगा फिर तारीकियों में डूब कर आज की शब फिर सवा नेज़े पे होगा आफ़्ताब मेरी आँखों में सवालों के हज़ारों क़ाफ़िले उस के चेहरे पर थका-माँदा सा इक तन्हा जवाब इक शजर मुझ को उढ़ा कर अपने साए की रिदा अपने सर ओढ़े रहा होगा तमाज़त का अज़ाब दूसरों के ग़म समेटे जिस ने 'नक़वी' सारी उम्र काश कर सकता कोई ख़ुद उस के ज़ख़्मों का हिसाब