इस घटा-टोप अँधेरे का समाँ क्या कहिए हुस्न-ए-तदबीर है ऐसे में कहाँ क्या कहिए कुछ जो कहते हैं तो कटती है ज़बाँ क्या कहिए सरगुज़श्त अपनी सर-ए-नोक-ए-सिनाँ क्या कहिए रब्त-ए-बाहम में भी तस्कीन-ए-दिल-ए-ज़ार कहाँ किस कशाकश में है ये उम्र-ए-रवाँ क्या कहिए मसअले दिल के सुलझते नहीं सुलझाने से हो अगर होता है एहसास-ए-ज़ियाँ क्या कहिए बुत-कदे वालों ने असनाम तराशे क्या क्या मुतमइन फिर भी नहीं क़ल्ब-ए-तपाँ क्या कहिए जिन से दुनिया को तवक़्क़ो थी जहाँबानी की माँगते फिरते हैं वो इज़्न-ए-अज़ाँ क्या कहिए इख़्तियारात किसी और तो क्या ख़ुद पे नहीं मौज-ए-ख़ूँ भी है जहान-ए-दिगराँ क्या कहिए शेर-गोई की सनद लीजिए किस से 'हामिद' हम हैं और मजमा-ए-सद-बे-हुनराँ क्या कहिए