इस इश्क़ का अंजाम मैं कुछ सोच रहा हूँ हाँ ऐ हवस-ए-ख़ाम मैं कुछ सोच रहा हूँ ख़ाली हुए सब जाम नहीं कोई भी मय-कश ऐ दुर्द-ए-तह-ए-जाम मैं कुछ सोच रहा हूँ जी भर के तुझे आज मैं देखूँ कि न देखूँ ऐ हुस्न-ए-लब-ए-बाम मैं कुछ सोच रहा हूँ अपने दिल-ए-बेताब से मैं ख़ुद हूँ परेशाँ क्या दूँ उन्हें इल्ज़ाम मैं कुछ सोच रहा हूँ मेरे लिए महबूब की ज़ुल्फ़ों की हवा ला ऐ गर्दिश-ए-अय्याम मैं कुछ सोच रहा हूँ तारे से चमकने लगे तारीक फ़ज़ा में हाथों में लिए जाम मैं कुछ सोच रहा हूँ इक वो भी ज़माना था कि फ़ारिग़ था मैं 'साक़िब' अब तो सहर-ओ-शाम मैं कुछ सोच रहा हूँ