जुनूँ की इक मुकम्मल दास्ताँ मालूम होती है मिरी हस्ती तमाशा-ए-जहाँ मालूम होती है मोहब्बत को ये दुनिया वज्ह-ए-ग़म कहती है क्यों आख़िर मुझे तो ये नशात-ए-बे-कराँ मालूम होती है इक ऐसा वक़्त भी आता है दौरान-ए-मोहब्बत में दिल-ए-मुज़्तर की हर धड़कन फ़ुग़ाँ मालूम होती है ख़ुदा शाहिद है जिस दिन से निगाहें तुम ने फेरीं हैं मुझे ये ज़िंदगी बार-ए-गराँ मालूम होती है ख़ुलूस-ओ-मेहर-ओ-उल्फ़त जज़्बा-ए-ईसार किस में है 'ज़िया' ये बात वक़्त-ए-इम्तिहाँ मालूम होती है