जब कभी उस की याद आई है सौ बहारें जिलौ में लाई है हो न हो उस की याद आई है उम्र-ए-रफ़्ता को साथ लाई है बादा-ए-इश्क़ का सुरूर न पूछ उस ने पी कर मुझे पिलाई है काश मिल जाए फिर गँवाने को ज़िंदगी हम ने जो गँवाई है मुझ को एहसास-ए-रंग-ओ-बू न हुआ यूँ भी अक्सर बहार आई है ताबिश-ए-मेहर-ओ-माह है फीकी जब से वुसअ'त नज़र ने पाई है तेरे बंदों को क्या हुआ या-रब तुझ से दावा-ए-आश्नाई है उस से हम दाद-ख़्वाह-ए-उल्फ़त हैं जो फ़क़त महव-ए-ख़ुद-नुमाई है लाला-ओ-गुल में ढूँढने वालो उस ने सूरत कभी दिखाई है शिकवा-ए-नारसी-ओ-नाकामी ए'तिराफ़-ए-शिकस्ता-पाई है