इस लिए भी मुझे तुझ से मिलने में ताख़ीर है ख़्वाब की सम्त जाती सड़क ज़ेर-ए-ता'मीर है इतने फूल इक जगह देख कर सब का जी ख़ुश हुआ पत्तियाँ झड़ने पर कोई कोई ही दिल-गीर है हँसती दुनिया मिली आँख खुलते ही रोती हुई ये मिरा ख़्वाब था और ये उस की ता'बीर है जिस ज़बाँ में है उस की समझ ही नहीं आ रही ग़ार के दौर के एक इंसाँ की तहरीर है रहम खाती हुई कितनी नज़रों का है सामना मेरी हालत ही शायद मिरे ग़म की तश्हीर है कैसा कैसा है जल्वा मिरे सामने इस घड़ी फिर भी चश्म-ए-तसव्वुर में तेरी ही तस्वीर है