इस लिए जफ़ाओं पर मुझ को मुस्कुराना था और उस सितम-गर का हौसला बढ़ाना था आँसुओं की क़ीमत जब मोतियों से बढ़ कर थी वो मिरी मोहब्बत का और ही ज़माना था जब सितम से डरते थे अब करम से डरते हैं ये भी इक ज़माना है वो भी इक ज़माना था ज़िंदगी ने लूटा है ज़िंदगी को दानिस्ता मौत से शिकायत क्या मौत का बहाना था वो भी दौर गुज़रा है जब मिरी वफ़ाओं से आप ही नहीं तन्हा बद-गुमाँ ज़माना था ऐ 'नसीम' गुलशन में जब बहार के दिन थे दोश पर फ़ज़ाओं के मेरा आशियाना था