इस सफ़र का चेहरा चेहरा आइना वाला लगा चल पड़ा तो मुझ को सारा रास्ता देखा लगा इन बदलते मंज़रों में हम तो ठहरे बे-वक़ार आप ही कह दें ये मौसम आप को कैसा लगा टूटते रिश्तों के युग में ऐसा भी लम्हा मिला अपना घर तो अपना घर था सारा घर अपना लगा अब के जब परदेस से लौटे तो अपने देस में नीम का भी ज़ाइक़ा हम को बहुत अच्छा लगा कूचा-ए-अस्वद के बाशिंदे हैं हम अपना वजूद माँ के आँचल में लगे पैवंद का बख़िया लगा डूबते सूरज को देखो ज़िंदगी अपनी लगे सुब्ह का निकला मुसाफ़िर शाम को घर जा लगा