उल्फ़त की नई मंज़िल को चला तू बाँहें डाल के बाँहों में दिल तोड़ने वाले देख के चल हम भी तो पड़े हैं राहों में क्या क्या न जफ़ाएँ दिल पे सहीं पर तुम से कोई शिकवा न किया इस जुर्म को भी शामिल कर लो मेरे मासूम गुनाहों में जब चाँदनी रातों में तुम ने ख़ुद हम से किया इक़रार-ए-वफ़ा फिर आज हैं हम क्यों बेगाने तेरी बे-रहम निगाहों में हम भी हैं वही तुम भी हो वही ये अपनी अपनी क़िस्मत है तुम खेल रहे हो ख़ुशियों से हम डूब गए हैं आहों में