इस से पहले कि ग़म-ए-इश्क़ फ़ुग़ाँ तक पहुँचे तुम ये मौक़ा ही न दो बात यहाँ तक पहुँचे ता-ब-दामान-ए-जुनूँ अक़्ल निगहबान रही फिर मुझे होश नहीं हाथ कहाँ तक पहुँचे ले ग़म-ए-इश्क़ हमी ख़ाक हुए जाते हैं ये तो कहने को न होगा कि फ़ुग़ाँ तक पहुँचे ऐसे माहौल में फ़रियाद भी ला-हासिल है ज़ब्त करने से जहाँ बात फ़ुग़ाँ तक पहुँचे