इश्क़ छुपता नहीं छुपाने से फ़ाएदा क्या नज़र बचाने से जब क़फ़स में चराग़ जलते हैं लौ निकलती है आशियाने से तर्क-ए-उम्मीद इक बहाना था कर चुके ये भी सौ बहाने से होशियार ऐ निगाह-ए-वक़्त-नवाज़ रुख़ बदलते हुए ज़माने से हासिल-ए-ज़िक्र हो तुम्ही लेकिन इब्तिदा है मिरे फ़साने से जागना था हमें ब-कार-ए-हयात सोए हैं मौत के बहाने से ज़िक्र-ए-महबूब फ़र्ज़ था 'अंजुम' कह लिए शे'र इस बहाने से