इस तरह मसाइब का कर के सद्द-ए-बाब आए ख़्वाहिशात को अपनी हम कहीं पे दाब आए ये मिरा जुनूँ था जो हार कर नहीं बैठा वर्ना ज़िंदगानी में ग़म तो बे-हिसाब आए एक संग-दिल मुझ पर माइल-ए-करम है आज हैरती हूँ कीकर पर किस तरह गुलाब आए मेरी कामयाबी पर जश्न क्यों मनाएगा मेरा नाम सुनते ही जिस को पेच-ओ-ताब आए आप की मोहब्बत का आज हो गया क़ाइल एक फूल के बदले संग बे-हिसाब आए मुश्किलें हुईं आसाँ रास्ते हुए दुश्वार कट चुकी सरों की फ़स्ल अब तो इंक़लाब आए बा-कमाल थे 'अम्बर' फिर भी हम रहे गुमनाम बे-हुनर के हिस्से में सैकड़ों ख़िताब आए