इश्क़ है बंदा-ए-आज़ाद का मक़्सूद-ए-हयात अक़्ल-ए-बुत-गर ने तराशे हैं हज़ारों मा'बूद वुसअ'तें और अता अरसा-ए-आफ़ाक़ को कर तंग है मेरे जुनूँ पे ये जहान-ए-महदूद फ़ौक़ियत देते हैं मज़हब पे जो क़ौमिय्यत को उन का इदराक मोअ'त्तल है बसीरत महदूद अब कहाँ हुस्न-ए-ख़ुद-आरा में ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ अब कहाँ इश्क़ के मस्लक में तरीक़-ए-महमूद न वो मंज़िल-गह-ए-मजनूँ है न वो वादी-ए-नज्द रह-रव-ए-शौक़-ओ-तमन्ना की हैं राहें मसदूद ज़ेहन में उन के कहाँ शो'ला-ए-तख़्लीक़-ए-सुख़न जो ये कहते हैं कि अफ़्कार पे तारी है जुमूद शम्अ-ए-ऐवान-ए-तरब क़िस्मत-ए-मुनइ'म 'फ़ारूक़' दिल-ए-मजबूर की तक़दीर फ़क़त शो'ला-ए-दूद