मुंतज़िर इंसान अपने फ़िक्र की तमजीद का वक़्त आएगा कभी इंसान की तौहीद का सोचता हूँ सोचना भी आदमी का जुर्म है हर यक़ीं तालिब है मेरे फ़िक्र की तहदीद का रास्ता ता'मीर-ए-मिल्लत का निकल आएगा कुछ वा हो दरवाज़ा गर इस्तिफ़हाम का तन्क़ीद का ज़ेर हो जाए ज़बरदस्ती का लश्कर एक दिन हो सबक़ तश्दीद का हिस्सा फ़क़त तजवीद का जब्र की बस्ती में भी राय की आज़ादी मिले सब को इस्तेहक़ाक़ हो ताईद का तरदीद का हो गई फ़र्सूदा वाइज़ आप की ये दास्ताँ आ गया है वक़्त अब अफ़्कार की तहदीद का गुफ़्तुगू के फ़न से हैं ना-आश्ना क्यों लोग सब हर कोई मुश्ताक़ अपनी सोच की ताईद का सोच पर पहरे 'हिदायत' हों तो क्या हो इर्तिक़ा मुज्तहिद भी बन गया है ख़ोशा-चीं तक़लीद का