इश्क़ की बारगाह तक पहुँचा हुस्न जा-ए-पनाह तक पहुँचा दिल के हाथों वो शोख़ भी आख़िर मेरे हाल-ए-तबाह तक पहुँचा अब तो उतरा हूँ तर्क-ए-उल्फ़त पर दर्द फ़िक्र-ओ-निगाह तक पहुँचा आसियों से है मुजतनिब वाइ'ज़ ज़ोहद हद्द-ए-गुनाह तक पहुँचा तेशा-ए-कोह-कन का वार आख़िर सतवत-ए-कज-कुलाह तक पहुँचा जब भी तख़रीब-ए-दीं की बात चली सिलसिला ख़ानक़ाह तक पहुँचा ढूँड कर हश्र में करम उस का मेरे फ़र्द-ए-सियाह तक पहुँचा