जब भी तिरी यादों की चलने लगी पुर्वाई हर ज़ख़्म हुआ ताज़ा हर चोट उभर आई इस बात पे हैराँ हैं साहिल के तमाशाई इक टूटी हुई कश्ती हर मौज से टकराई मयख़ाने तक आ पहुँची इंसाफ़ की रुस्वाई साक़ी से हुई लग़्ज़िश रिंदों ने सज़ा पाई हंगामा हुआ बरपा इक जाम अगर टूटा दिल टूट गए लाखों आवाज़ नहीं आई इक रात बसर कर लें आराम से दीवाने ऐसा भी कोई वा'दा ऐ जान-ए-शकेबाई किस दर्जा सितम-गर है ये गर्दिश-ए-दौराँ भी ख़ुद आज तमाशा हैं कल थे जो तमाशाई क्या जानिए क्या ग़म था मिल कर भी ये आलम था बे-ख़्वाब रहे वो भी हम को भी न नींद आई